चंद्रकांत बाबुभाई पटेल
चंद्रकांत बाबुभाई पटेल: एक प्रवासी भारतीय की अनसुनी कहानी

चंद्रकांत बाबुभाई पटेल

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Kanpur , Uttar Pradesh
(India)
चंद्रकांत बाबुभाई पटेल: एक प्रवासी भारतीय की अनसुनी कहानी

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श्रेणी: General | लेखक : pradip | दिनांक : 14-May-24 12:56:51 PM

शायर निसार इटावी ने लिखते हैं कि....वही हक़दार हैं किनारों के, जो बदल दें बहाव धारों के। बस यूं समझ लीजिए कि गुजरात में जन्में पले-बढ़े-पढ़े और फिर तंजानिया होते हुए ब्रिटेन में आज प्रवासी भारतीयों की बुलंद आवाज बने चंद्रकांत बाबुभाई पटेल इन पंक्तियों के साक्षात प्रमाण हैं। दुनिया इन्हें सीबी पटेल ही कहती है। लेकिन अगर आप ये सोचते हैं कि  चंद्रकांत बाबुभाई पटेल यूं ही सीबी पटेल नहीं बन गए तो आप अधूरा सच जानते हैं। क्योंकि कहते है न कि जब पढ़ते पढ़ते रातें छोटी लगने लगे तो समझ लेना जीत का जुनून सिर पर सवार है। बस ऐसा ही कुछ जुनून और जज्बा सीबी पटेल के भीतर बहुत कम उम्र में ही उमड़ने लगा था और इसने उनमें इस कदर जोश भरा कि गुजरात के खेड़ा जिले में जन्में और फिर वडोदरा के एमएस विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन करने और फिर जिंदगी के तमाम संघर्षों और थपेड़ों को सामना करते हुए उन्हें अपनी जन्मभूमि से हजारों मील दूर अफ्रीकी देश तंजानिया जाना पड़ा और वो शौक से तांजानिया नहीं गए। उनके तंजानिया जाने और फिर वहां से लंदन आने की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। दरअसल हुआ यूं कि सीबी पटेल का जन्म 1938 में एक धनाड्य या कहे तो जमींदार परिवार में हुआ था। घर में गाड़ी से लेकर लक्जरी लाइफ के हर सामान की मौजूदगी के कारण शुरूआती परवरिश शानो-शौकत में हुई। लेकिन आजादी के बाद जैसा के देश के तमाम हिस्सों में जमींदारी खत्म हुई तो सीबी पटेल का परिवार भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुआ। हालांकि सीबी पटेल के पिता जो बड़े ही धार्मिक थे उन्होंने बिजनेस में हाथ आजमाया फिर भी पहले वाला रसूख कहां हासिल हो पाता। इस बीच शानो-शौकत भरी जिंदगी के आदी रहे सीबी पटेल का जीवन भी बुरी तरह प्रभावित हुआ और जीवन अब पहले की तरह आसान नहीं था। फिर भी पढ़ाई के प्रति रुचि और करीबी लोगों की मदद से उनकी शिक्षा में बाधा नहीं आई। हालांकि अभाव के कारण मेडिकल की पढ़ाई नहीं कर पाने का मलाल तो था ही। लेकिन कहते है कि जिंदगी चलते चले जाने का नाम है। सीबी पटेल पढ़ाई के लिए कॉलेज गए तो अपनी फीस और दूसरे खर्चे के लिए साथ में नौकरी भी करने लगे। भले ही वो वक्त उनके लिए कठिन और अग्निपरीक्षा का रहा हो, लेकिन संघर्ष की आग ने ही सीबी पटेल को तपा कर खरा सोना बना दिया और समाज में काम को लेकर यही से उनका नजरिया पूरी तरह से बदलने लगा। सीबी पटेल को सेना में जाने की रुचि हुई तो उन्होंने एनसीसी ज्वाइन कर ली। लेकिन मिलिट्री एकेडमी में जाने का सपना सपना ही रह गया और इंटरव्यू किल्यर नहीं कर पाए। सीबी पटेल ने अपने समय में ऑल इंडिया शूटिंग चैम्पियनशिप में अव्वल स्थान हासिल किया था। इसी दौरान सीबी पटेल ने अपना घर बसाने का फैसला किया और उनकी शादी हो गई। जिम्मेदारियां बढ़ी तो वो तंजानिया चले गए और वहां उन्होंने  पुलिस डिपार्मेंट में नौकरी भी मिल गई। लेकिन तंजानिया में हो रहे आंदोलनों ने उनके सपने को तोड़ दिया और फिर से उनके पास कोई काम नहीं रह गया था। बावजूद इसके सीबी पटेल की दृढ़ इच्छा शक्ति ने उन्हें टूटने नहीं दिया और वो तंजानिया में ब्रिटिश काउंसिल क छत्रछाया में लॉ की पढ़ाई में लग गए। सीबी पटेल का मूलमंत्र ही यही रहा है कि शिक्षा के जरिए सीखें और जीवन को सफल बनाएं।

इसी बीच सीबी पटेल के लिए बार ऑफ लॉ स्टडीज की पढ़ाई पूर करने के लिए यूके आने क दरवाजे भी खुल गया था और आखिरकार वो ब्रिटेन आने में कामयाब हुए। यहां आने के बाद सीबी पटेल खुद को एक प्रोफेशनल के तौर पर स्थापित करना चाहते थे। एक तो सीबी पटेल भारतीय उसपर से गुजराती यानी BUSINESS BY BERTH ब्रिटेन में उन्होंने काम शुरू किया और सेविंग पर फोकस करते हुए रिटेल में प्रॉपर्टी बनानी शुरू की। इसी बीच उन्हें पता चला कि पिता ने संन्यास ले लिया है और उनका कहना था कि पैस ही सबकुछ नहीं होता है। सच पूछें तो इसी सोच ने सीबी पटेल का जीवन पूरी तरह से बदल दिया। शायर शकील आजमी ने ठीक ही लिखा है कि हार हो जाती है जब मान लिया जाता है। जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है। लगता है कि सीबी पटेल ने यही से ठान लिया कि अब समाज के लिए कुछ नहीं बहुत कुछ करना है। सीबी पटेल को लगा कि मीडिया ही वो प्रोफेशन है जो उनके और आसपास के लोगों के जीवन में बदलाव ला सकता है। क्योंकि तंजानिया में ठाकेर नाम के एक शख्स ने सीबी पटेल को बहुत प्रेरित किया था। उस व्यक्ति के पास नहीं के बराबर संसाधन थे लेकिन उसने नि:स्वार्थ भाव से अखबार प्रकाशित कर उन अफ्रीकियों के लिए मिशन के तहत काम किया जो  सामाजिक और आर्थिक तौर पर एकदम पिछड़े थे। सीबी पटेल ने तब उस शख्स की मदद की थी और शायद तभी उसने सीबी पटेल के मन में कहीं न कहीं मीडिया को लेकर पैशन पैदा कर दिया था। वही सीबी पटेल को बहुत पहले उनके मित्रों ने सेविंग के बाद ही मीडिया के बिजनेस में हाथ आजमाने का मंत्र दिया था, जिसे उसे याद करते हुए ही  उन्होंने अपने सेविंग से बचाए पैसे से गुजरात समाचार को खरीद लिया और फिर सीबी पटेल ने पीछे मुडकर नहीं देखा। एशियन वॉयस और गुजरात समाचार के संस्थापक और संपादक के तौर पर सीबी पटेल आज ब्रिटेन में भारतीय प्रवासियों के बीच मानवीयता के मनीषी भी और ताकतवार चेहरे के तौर पर भी मशहूर हैं। पत्रकारिता जगत में दोनों समाचार पत्रिकाएं ब्रिटेन में भारतीय समुदाय की ताकतवर आवाज है और यहां उनके हितों और उनके नजरिए का एक मजबूत जरिया भी है।

सीबी पटेल 1972 से ही ABPL यानी एशियन बिजनेस पब्लिकेशंस लिमिटेड का नेतृत्व कर रहे हैं और प्रकाशन के क्षेत्र में बुलंदियों को छूआ है और ये यूके में एशियाई मीडिया में सबसे सफल वेंचर में से एक है। सीबी पटेल का मानना है कि अपने पाठकों को जानना और सुनना जुरुरी ही नहीं प्राथमिकता होनी चाहिए और उन्होंने उसे अमल में भी लाया है। वो ब्रिटिश एशियाई समुदाय के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रचार करने के लिए अपने मीडिया प्रभाव का उपयोग करते हैं। सीबी पटेल का मानना है कि उनके पाठक उनके प्रकाशन को लेकर वफादार हैं और उनके बीच आपसी विश्वास कायम है। एबीपीएल ओल्ड स्ट्रीट, लंदन के व्यापार केंद्र में स्थित है। सीबी पटेल अपने काम को लेकर कितने तत्पर और जागरुक है कि पहले वो उपनगर में एक बड़े और आलीशान घर में रहते थे,  लेकिन एबीपीएल की बेहतरी और काम के साथ सामंजस्य बैठाने के लिए उन्होंने अपने दफ्तर के ऊपर बने एक फ्लैट को आशियाना बना लिया। वो कहते है कि इससे यात्रा में बर्बाद होने वाला घंटों का समय बच जाता जिसका उपयोग वह अपने मीडिया ग्रुप के लिए तो करते ही हैं। साथ ही अपने समुदाय की बेहतरी के लिए तमाम कामों को करने का भी समय निकाल लेते हैं।

87 साल के सीबी पटेल हर दिन 10 घंटे काम करते हैं और उनका नाम सीबी पटेल कैसे पड़ गया इसकी भी एक रोचक कहानी है। दरअसल सीबी कहते है कि लंदन में 10 से ज्यादा चंद्रकांत बाबूभाई पटेल नाम के लोग होंगे। ऐसे में उनका शॉर्ट नेम सीबी पटेल कहने में आसान था। वैसे देखा जाए तो सीबी पटेल नाम भी बहुत फेमस हो चुका है। तभी तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें अपना मित्र कहते हैं और नाम लेकर लोगों के बीच उन्हें बुलाते हैं । वाक्या 2015 का है जब वेम्बली स्टेडियम में 65,000 लोगों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण के दौरान सीबी पटेल का जिक्र किया था। इसी दौरान हीथ्रो से अहमदाबाद के लिए 2006 में सीधी उड़ान बंद होने के बाद सीबी पटेल ही ऐसे शख्स थे, जिन्होंने 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात कर इस उड़ान को फिर से चालू कराने की घोषणा कराई।  

सीबी पटेल आज भी निजी जीवन और प्रोफेशनल जीवन में बैलेंस बनाकर चल रहे हैं। तभी तो वो दादा से लेकर पिता की भूमिका को बखूबी निभाते रहे हैं। वही उनके साथ लोग 30-30-35 सालों से जुड़े हैं और उनके साथ आज भी काम कर रहे हैं। सीबी पटेल के नेतृत्व और मार्गदर्शन में  एशियन वॉयस और गुजरात समाचार प्रवासी भारतीयों के लिए सूचना, समाचार और विश्लेषण का सबसे बड़ा और बेहतर स्रोत हैं। जिसमें क्षेत्रीय राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय राजनीति से लेकर व्यापार, मनोरंजन,  संस्कृति के अलावा भी बहुत कुछ है।  सीबी पटेल की पत्रकार और समुदाय के नेता के रूप में ब्रिटेन में भारतीय प्रवासी समुदाय में गहरा प्रभाव है। सीबी पटेल तमाम युवा पेशेवरों के लिए मेंटर की भूमिका में हैं। सीबी पटेल समुदाय की सेवा के लिए बेहद विनम्र और प्रतिबद्ध हैं। ब्रिटेन में भारतीय प्रवासियों को बढ़ावा देने में उनका काम असाधारण है। सीबी पटेल एक वास्तव में अद्वितीय व्यक्ति हैं, और उनका काम ब्रिटेन में भारतीय प्रवासी समुदाय को प्रमोट करना है। सीबी पटेल का नेतृत्व और समुदाय के प्रति उनका समर्पण उन्हें सभी के लिए एक आदर्श और उनके योगदान को अविस्मरणीय बना देता है। सीबी पटेल सामुदायिक मुद्दों के लिए अभियान चलाने में अपने मीडिया आउटलेट्स का उपयोग करते है। 

सीबी पटेल की जिंदादिली इसी से समझी जा सकती है कि वो कहते हैं लंबे समय तक जीवित रहना चाहता हूं जिससे समाज के लिए कुछ कर सकूं और जब तक सांस हैं सक्रिय रहना चाहता हूं। सीबी पटेल की सनातन में अपार आस्था है और वो कहते है कि वो एक हिंदू हैं और उन्हें हिंदू होने पर गर्व है। सीबी पटेल अपने जीवन के उतार-चढ़ाव को कभी नहीं भूलते और जिन्होंने भी उनकी मदद की उसका धन्यवाद देते हैं। सीबी पटेल कहते हैं कि जीवन में न तो कोई पूर्ण विराम होता है और न ही कामयाबी का कोई एक मार्ग होता है। सीबी पटेल को कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया है। उन्हें महात्मा गांधी फाउंडेशन से गोल्ड मेडल मिला। वहीं 2023 में भारत सरकार की ओर से से प्रवासी भारतीय सम्मान पुरस्कार के लिए चुना गया।

सीबी पटेल भारत और ब्रिटेन समेत दूसरे देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में अहम भूमिका निभा रहे हैं। सीबी पटेल ने कई मौकों पर नस्ल समानता और विविधता, राष्ट्रीयता और आप्रवासन के मुद्दों पर अभियान चलाया।  सीबी पटेल ने लेचमोर हीथ के हरे कृष्ण मंदिर की रक्षा की और हॉंगकॉंग में भारतीय मूल के ब्रिटिश पासपोर्ट धारकों के अधिकारों के लिए काम किया है। सीबी पटेल की हिंदू फोरम ऑफ ब्रिटेन और नेशनल कांग्रेस ऑफ गुजराती ऑर्गेनाइजेशन क गठन में अहम भूमिका है।

आपको ये जानकर भी बेहद आश्चर्य होगा कि सीबी पटेल ही वो ब्रिटिश भारतीय जर्नलिस्ट े, जिन्हें तब की प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर ने इंडिया की आधिकारिक दौरे के दौरान आमंत्रित किया थावैसे सीबी पटेल के ब्रिटेन के ज्यादातर प्रधानमंत्रियों के साथ क्लोज रिश्ते रहे हैं और अब भी हैं। ये सीबी पटेल की महानता ही है कि जिस धरती पर वो रहते हैं उस ग्रेट ब्रिटेन को वो एक महान देश मानते हुए कहते है कि ये देश हमेशा ग्रेट बना रहे हौसलों और हिम्मत की बदौलत हार को भी हरा देने का माद्दा रखने वाले सीबी पटेल ने अपने बल बूते विदेशी सरजमीं पर जो मुकाम हासिल किया है वो काबिले गौर भी और काबिले तारीफ भी है।

सीबी पटेल के जीवन और उनकी शख्सियत को देखकर यही कहा जा सकता है कि वक्त की गर्दिशों का ग़म न करो, हौसले मुश्किलों में पलते हैं।