डा वेद प्रकाश सक्सेना
ऍम.एससी. (कैमिस्ट्री), ऍम. ए. (मनोविज्ञान), पीएच. डी. आयुर्वेद रत्न

डा वेद प्रकाश सक्सेना

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Kanpur , Uttar Pradesh
(India)
ऍम.एससी. (कैमिस्ट्री), ऍम. ए. (मनोविज्ञान), पीएच. डी. आयुर्वेद रत्न

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श्रेणी: General | लेखक : | दिनांक : 23-Apr-24 07:29:03 PM

संक्षिप्त परिचय
अपनी शैक्षणिक परीक्षाओं को प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करते हुए वेद प्रकाश सक्सेना ने रसायन (कैमिस्ट्री) में एम.एससी. की उपाधि अर्जित करके जीविकोपार्जन के लिए अध्यापन को अपना व्यवसाय क्षेत्र चुना और वे किसी अन्य क्षेत्र की और कभी आकर्षित नहीं हुए। उनकी समग्र जीवन शैली 'सादा जीवन उच्च विचार' के भव्य आदर्श पर आधारित रही जिसके अंकुर उनकी बाल्यावस्था में ही उद्भूत हो गए थे। बारह वर्ष की आयु में परिवार की आर्थिक विपन्नता के कारण उन्हें विद्यालय में शुल्क-मुक्ति के लिए आवेदन करना पड़ा। तभी उन्होंने व्रत ले लिया कि वे सिनेमा तथा आमोद-प्रमोद के धन एवं समय का दुरूपयोग होने वाले सब प्रकार के क्रियाकलापों एवं व्यसनों से दूर रहेंगे। आर्थिक विपन्नता से मुक्त हो जाने पर भी वे अपने इस व्रत पर अडिग रहे; वे न कभी सिनेमा गए, न किसी और व्यसन में लिप्त हुए।
मूलतः रसायन के विद्यार्थी होते हुए भी अपने रूचि वैविध्य से प्रेरित हो कर उन्होंने मनोविज्ञान में एम. ए. हिन्दी साहित्य में साहित्य विशारद, आयुर्वेद रत्न, तथा अपने मूल विषय, रसायन, में पीएच. डी. की उपाधियाँ अर्जित कीं शास्त्रीय संगीत में अपनी रूचि को उन्होंने वायलिन वादन में कुशलता प्राप्त करके मूर्त रूप दिया। उन्होंने हिन्दी साहित्य और अंग्रेजी साहित्य के व्यापक अनुशीलन द्वारा इन दोनों भाषाओं में वाचन और लेखन की सराहनीय कुशलता प्राप्त की। बाल्यावस्था में ही अपने माता-पिता से ग्रहण किए हुए आध्यात्मिक संस्कारों से प्रेरित हो कर वे अध्यात्म के क्षेत्र में निरन्तर अध्ययन-मनन करते रहे।
अध्यापन के क्षेत्र में अपनी नैसर्गिक अभिरुचि को और अधिक व्यापक रूप देने के लिए उन्होंने प्राथमिक कक्षाओं से उच्च कक्षाओं तक के लिए सामान्य विज्ञान तथा रसायन पर अनेकानेक पुस्तकों का प्रणयन किया जिनमें से अनेक विभिन्न राज्यों में 'एकमात्र पाठ्यपुस्तकों' के रूप में चयनित हुई। वे हिन्दी में कविताएँ, हाइकु, आदि भी लिखते रहे हैं जिनका अपने आत्मप्रचार-विमुख स्वभाव के कारण उन्होंने प्रशंसकों के आग्रह की अवमानना करते हुए प्रकाशन नहीं होने दिया (आशा है कि अब वे उनके प्रकाशन की अनुमति दे देंगे)।
के. एम. कॉलिज, दिल्ली विश्वविद्यालय से रसायन में रीडर के पद से सेवानिवृत्त हो जाने के बाद उन्होंने अपने अध्ययन और लेखन को न केवल विराम नहीं दिया अपितु उनका और अधिक विस्तार किया। इस प्रकार वे 'अध्यापक कभी अवकाश ग्रहण नहीं करता' की उक्ति को चरितार्थ कर रहे हैं। विगत चार वर्षों में गीता से सम्बन्धित अपने गहन अध्ययन-मनन को उन्होंने 'श्रीमद्भगवद्गीता जीवन-पथ प्रदीपिका' के रूप में प्रस्तुत किया है। सम्भवतः, गीता का आधुनिक विज्ञान एवं मनोविज्ञान के किसी अध्येता द्वारा प्रणीत यह पहला भाष्य है जिसमें इन विषयों की स्पष्ट छायें सर्वत्र मुखरित हो कर उसे समसामयिक सार्थकता से अलंकृत कर रहीं हैं। डा० वेद प्रकाश सक्सेना की मान्यता है कि गीता में मानव की सभी वैयक्तिक, सामाजिक, राष्ट्रीय, और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के व्यावहारिक समाधान उपलब्ध हैं जिनके अनुशीलन से सम्पूर्ण मानवता का सर्वतोमुखी कल्याण हो सकेगा।
गीता के दिव्य उपदेशों में अपनी गहन आस्था से अनुप्राणित डा० वेद प्रकाश सक्सेना की भावी योजनाएँ हैं भाषण एवं लेखन द्वारा जनता में गीता के दिव्य उपदेशों की सार्थकता को प्रतिष्ठित करना तथा गीता प्रतिपादित जीवनशैली को अपनाने की प्रेरणा देना, विभिन्न आयु वर्गों के विद्यार्थियों के लिए गीता-ज्ञान पर आधारित क्रमिक पुस्तकों का प्रणयन एवं प्रकाशन करना, तथा गीता को भारत की राष्ट्रीय पुस्तक के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए हर सम्भव विधिविहित प्रयास करना। अपनी योजनाओं के लक्ष्य के लिए उनकी स्वरचित पद्यात्मक अभिव्यक्ति है:
घर-घर गीता, सस्वर गीता। सुमधुर गीता, हर उर गीता ॥
"घर-घर गीता का सस्वर पारायण हो और हर व्यक्ति अपने उर में सुमधुर गीता के कल्याणकारी उपदेशों को धारण करे।" प्रभु से प्रार्थना है कि डा० पैद प्रकाश सक्सेना अपने जीवन काल में अपने लक्ष्य को सिद्ध हुआ देख सकें।
ब्रज मोहन मित्तल